अतीत की यादें  Gaurav Rajput

अतीत की यादें

Gaurav Rajput

ईमान दुनिया से लूटा
रच - बस गया है भ्रम यहाँ,
कोई दूर बैठा पर्वतों पे
गीत है यह गा रहा।
अतीत वैभव स्वप्न-रत,
स्व-लोचनों से
नीर है बहा रहा,
कर लकीरों को आँसुओं की
धार से है धो रहा।
 

वह चीखता चिल्ला रहा
पर कह रहा अपने नयन को,
देख! मैं भी था वहाँ,
पर तू लगा था वो दिखाने
जिस पर आज मैं पछता रहा।
 

क्या कुछ नहीं था?
धर्म भी था, सत्य भी था,
नीति नित्य स्वछंद था।
हरियाली पसरी थी धरा पे
हर ओर एक आनंद था।
भोजन के कण-कण में बसा
माटी का सुगंध था,
आमों के बगीचे में
कभी रूकता वहाँ बसंत था।
कोयल थी गाती गीत
और झूमता पवन था,
नदियाँ वहाँ थी बह रही
और धार भी स्वतंत्र था।
 

वह बन गई दर्पण वहाँ थी
गगन निहारे रूप था,
थी चाँदनी डूबकी लगाती
अद्भुत वहाँ सौंदर्य था।
चाँद था मामा बना,
बिल्ली बनी मौसी वहाँ,
पीपल में वहाँ थी आस्था,
तुलसी सजाती द्वार थी।
 

आँगन में कौवा का
काँव -काँव
एक नया संदेश था,
अतिथि स्वागत को द्वार पर
भीड़ भी अनेक था।
त्याग था बस भावों में,
हृदय वहाँ कृतज्ञ था,
हँसी भ्रम का था नहीं
और आँसुओं में भी
पड़ी थी आशा किसी की।
 

न्याय भी था हर जगह,
पर झूठ की
विजय कभी होती न थी।
गाय थी माता वहाँ और
गुरु भी था एक पिता।
शिक्षा नहीं था मात्र
अवसरों की,
वहाँ तो ज्ञान का था वास्ता,
लोग पाकर ज्ञान खुद
अपना बनाते रास्ता।
 

खेती थी नहीं जुआ वहाँ,
वह जीवन का आधार था,
उसमें किसानों का मर्म था,
वह कर्म का संसार था।
उस जहाँ को छोड़कर,
मैं आ गया इस छोर पर,
अब क्या बचा है
इस जहाँ में,
बस स्वार्थ की है दास्ताँ।
ईमान दुनिया से लुटा,
रच-बस गया है भ्रम यहाँ,
कोई दूर बैठा पर्वतों पे,
गीत है यह गा रहा।

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