आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा Bhaskar Chandra Bharti
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा
Bhaskar Chandra Bhartiआज कई गुस्ताखियाँ करूँगा,
जी जो चाहे वही करूँगा।
दिल की न दिमाग की,
न ही कसमों ख्वाब की,
आज मैं कुछ न सुनूँगा,
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।
जमीं पे रह थोड़ा आसमाँ कहूँगा,
पानी पे चल लहरों से थोड़ी
मनचली अठखेलियाँ करूँगा,
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।
हो कितने भी बड़े बवंडर
मोम की बत्तियाँ जलाऊँगा,
बरसातों की बूँदें बटोर
अपना समंदर बनाऊँगा।
बुला चाँद को आज जमीं पे
क़दमों तले बिछाऊँगा,
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।
उड़ते पतंगों की उड़ानें
रोकती डोर काट जाऊँगा,
हो कितनी भी गहरी लकीरें
सीमाओं की, थोड़ी मिटाऊँगा
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।
फूल तोड़े हैं जिन हाथों ने
उनकी आज सुनवाई होगी,
भँवरों की अदालत में
उन पर आज कार्रवाई होगी,
अब न चलेगा धरती का दोहन
आज विद्रोही बिगुल बजाऊँगा,
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।
सारे नाते तोड़ सूरज तारों से
जुगनुओं की बारिश में नहाऊँगा,
शुष्क हो गयी वसुंधरा की
चश्मों की विरासत लाऊँगा,
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।
फरेबी इस दुनिया में
विश्वास की लौ जलाऊँगा,
चुन-चुन लाए नगीनों को
मिट्टी में फेंकता जाऊँगा,
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।
महलों-मकानों की दीवारों को
छोड़ जंगलों में निकल जाऊँगा,
पर्वतों कंदराओं की छत बना
ठुमक-ठुमक नृत्योत्सव मनाऊँगा,
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।
वानरों की फ़ौज होगी
शाखाओं पर मौज़ होगी,
पंछी पपीहा के संग
चुप्पी जंगल की तोड़ती
सन्नाटों के तार झनझनाऊँगा,
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।
भूल के सावन की झमझम,
पतझड़ की फुहारों का
सतरंगी साज आज सजाऊँगा,
रेशमी हवाओं की धुन पे
खड़े घंटों बंसी बजाऊँगा,
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।
खोए जो जीवन गीत मेरे,
एक-एक को आज गुनगुनाऊँगा,
क्या व्याध क्या हंसों का टोला
सबको पुकारता जाऊँगा,
साथ लिए मैं आज सबको
जंगल में मंगल उत्सव मनाऊँगा,
आज कई गुस्ताखियाँ करूँगा।