मानवता Gaurav Rajput
मानवता
Gaurav Rajputये कैसा है पागलपन, जो घोर मूढ़ता लाता है,
भटके मन की चरम प्रवृति, पशु रूप दिखलाता है।
अपनी सीमा लांघ मनुज बस अंधकार को पाता है,
जीवन के मुल्यों को भूल, कोप भँवर फस जाता है।
क्षणिक सुख के तुच्छ रूप को, आत्म रूप बतलाता है,
पर काम भोग की परम तृप्ति में, चेतन मन खो जाता है।
अपने अचेतन मन को वो, सब नादानी समझाता है,
पर पूर्ण प्रकृति के सात्विक रूप को, कभी समझ नहीं पाता है।
अपने दायित्वों को भूल वो, अंध मार्ग अपनाता है,
पर भौतिक दुनिया के आकर्षण मे, खुद ही वो फंस जाता है।