बुझकर भी जलना आता है Jay Singh Yadav
बुझकर भी जलना आता है
Jay Singh Yadavअखण्ड दीप की अखण्ड ज्योति हूँ,
बुझकर भी जलना आता है।
कफन बाँध सीमा पर चलता दुश्मन भी घबराता है,
मेरे शौर्य के आगे दुश्मन नतमस्तक हो जाता है।
देख हमारी छाती को पर्वत सिहर सा जाता है,
मेरी हुँकारों पे शेरों का गर्जन रुक जाता है।
अखण्ड ज्योति का अखण्ड दीप हूँ,
बुझकर भी जलना आता है।
आँधी और तूफ़ानों के रुख को मोड़ मैं देता हूँ,
वर्षा जैसी ऋतुओं का डटकर सामना करता हूँ।
आती है जब शरद ऋतु तो अपनी वर्दी की अग्नि से
सर्द को गर्म कर देता हूँ,
आती है ग्रीष्म ऋतु तो माँ भारती के शीतल आँचल में सहन कर लेता हूँ।
अखण्ड दीप की अखण्ड ज्योति हूँ,
बुझकर भी जलना आता है।
इतिहास हमारा क्या लिखेगा, हम इतिहास लहू से लिखते हैं,
देकर अपने प्राणों की आहुति अमिट सदा के लिए हो जाते हैं।
मा भारती के आंचल का तिरंगा ओढ़कर हम शहीद हो जाते हैं,
अखण्ड दीप की अखण्ड ज्योति हूँ,
बुझकर भी जलना आता है।