रोशनी से मोहब्बत  Avinasha Sharma

रोशनी से मोहब्बत

Avinasha Sharma

मुझे रोशनी से मोहब्बत थी,
प्यास उसी की हर वक्त थी।
 

जूगनू सी प्यास लिए आग की लालिमा में उसे देखा,
खींची चली उस ओर तो उसी में झुलसते अपने बदन को मैंने देखा।
 

उगते सूरज की चमक मन को भा गई,
बस उसे ही देखती रहूँ यह बात मन में आ गई।
 

चढ़ते सूरज ने जब आँखें मेरी छलका दी,
उसकी तपिश ने फिर निराशा दिखला दी।
 

अब रोशनी से मोहब्बत चमक में तबदील हो गई,
हर चमकती चीज़ में खोज उसी की हो गई।
 

कपड़े, गहने, दौलत, रत्नों की चमक से प्यार हो गया,
ना जाने पहली मोहब्बत का आगाज़ कहाँ खो गया।
 

थकी हुई आँखों के झरोंको को जब बंद किया,
खुद के साथ बिताए उन पलों ने मुझे दंग किया।
 

चाँद की शीतलता लिए हजारों सूरज चमक उठे,
उनकी खूबसूरती और लालिमा से मेरे रोम-रोम दमक उठे।
 

ना आँखें नम थीं, ना तपिश से मैं आहत थी,
उन किरणों की शीतलता ने रूह को राहत दी।
 

आँखों की पुतलियों ने हर लम्हा खुद में समेट लिया,
उस रुहानियत की दमक ने मुझ को खुद में लपेट लिया।
 

अल्फ़ाज़ों से परे यह एहसास बढ़ता गया,
और अंधेरे से उभरने का राज खुलता गया।
 

मुझे इसी रोशनी से मोहबब्त है,
हर दिन दिल को इसी की जरूरत है,
हाँ, मुझे इस रुहानियत से मोहब्बत है।

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