दोस्त की तलाश  JASPAL SINGH

दोस्त की तलाश

JASPAL SINGH

कहाँ जाकर खत्म हुई मेरी एक दोस्त की तलाश,
कि दोस्त तो मिल गया मगर दोस्ती मिल ना सकी।
 

इसको वक्त की मेहरबानी कहूँ या किस्मत की नाइंसाफी,
कि जिंदगी गुजरती रही मगर जिंदगी बदल ना सकी।
 

हम उसे भूलना तो चाहते हैं मगर भूल नहीं सकते,
वो यादों में ऐसे बस गई कि फिर निकल ना सकी।
 

ना जाने कौन से रास्ते पे चल पड़े मंजिल को पाने के लिए,
कि रास्ता तो खत्म हो गया पर मंजिल मिल ना सकी।
 

हमने खुद के ही दिल को आग लगा ली शमा को जलाने के लिए,
दिल तो जलता रहा पर शमा फिर भी जल ना सकी।
 

मैं क्या यत्न करूँ क्या कहूँ कैसे मनाऊँ उनको,
यही सोच-सोच के सुबह हो गई पर रात निकल ना सकी।
 

मेरी हिम्मत नहीं कह पाने की और उनकी आदत नहीं समझ जाने की,
मैं भी वही रहा और उनकी आदत भी बदल ना सकी।
 

उसके बिना जिंदगी एक पुरानी इमारत की तरह मालूम होती है,
जो अंदर से खोखली तो हो गई पर फिर भी गिर ना सकी।
 

कहाँ जाकर खत्म हुई मेरी एक दोस्त की तलाश,
कि दोस्त तो मिल गया मगर दोस्ती मिल ना सकी।

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