साँवली सूरत में  Jay Singh Yadav

साँवली सूरत में

Jay Singh Yadav

रूप साँवली सूरत में एक प्यार की मूरत लगती है,
बोले जब वो तो कोयल की जैसी लगती है।
जब लाती मुस्कान वो अपने चाँद से मुखड़े पर,
उपवन की कलियों जैसे वो रूप सुहानी सी दिखती है।
 

मस्तक के ललाट पर जब वो बिंदिया को सजाती है,
बिंदिया उसकी चमचम-चमचम तारा सी लगती है।
नयन देख कजरारे उसके झील का सागर लगती है,
जैसे सागर के आँचल में कोई सीप सी मोती लगती है।
 

केश वो अपना जब लहराती पूर्वा पवन के झोंके में,
देख घटा उसके केशों को शाम सुहानी सी लगती है।
जब खनकाती कंगन अपना पूनम की वो रातों में,
जैसे संगीत बजाता कोई सावन की हो बहारों में।
 

जब महकाती हाथ की मेहंदी वो तो अपने हाथों में,
जैसे महक उठा हो उपवन कोई शांत सरोवर में।
जब बाजे पावों में पायल, छन-छन करती कानों में,
रोम-रोम मेरे तन को वो जैसे घुँघरू मधुर संगीत कोई सुनाती है।

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