माँ की कीमत Puneet Kumar
माँ की कीमत
Puneet Kumarबिजली सी कड़की, खुली थी खिड़की,
देखा जो मैंने तो बारिश हो रही थी,
गया मैं बाहर, देखा क्या मैंने, वो बारिश नहीं थी,
इक मासूम लड़की रो रही थी।
पूछा जो मैंने क्यों रो रही हो,
आँसुओं की इस बारिश से सब कुछ क्यों भिगो रही हो?
उसने कहा मुझे माँ की याद आ रही है,
दूर आसमान में बैठी आज मुझे बुला रही है।
क्या करुँ मैं उसके पास जा नहीं सकती,
बदकिस्मत हूँ इतनी की उसे गले लगा नहीं सकती।
पास बैठकर मैंने उसे समझाया,
माँ की तरह उसे गले लगाया,
मैं माँ की कमी पूरी कर नहीं सकता,
दुखों का ये समंदर कम कर नहीं सकता।
उसने कहा तुम कितने खुशकिस्मत हो,
तुम्हारे पास माँ है,
मैं दर-दर कि ठोकरें खा रही हूँ
और तुम्हारे पास सारा जहाँ है।
ये सुनकर मेरी भी आँखें भर आईं,
नासमझ था मैं कबसे कि आज मुझे
माँ कि कीमत समझ आई।
माँ कि ममता, माँ का प्यार,
माँ का वो डांटकर गले लगाना,
नींद न आने पर हमें लोरी सुनाना।
इन सबको मैं लौटाना भी चाहूँ तो लौटा नहीं सकता,
भगवान कि इस मूरत को झुठलाना भी चाहूँ तो झुठला नहीं सकता।
आज खुदा से इतनी ही दुआ करता हूँ
कि हर बच्चे के नसीब में माँ का प्यार भर देना,
पूरा न भर सको तो थोड़ा ही भर देना।
मैं भी आज यही प्रण लेता हूँ
कि दुनिया जहाँ की खुशियाँ माँ के क़दमों में रख दूँगा,
दुःख उसके पास भी न फटक सके
इतना प्यार मैं उसके दामन में भर दूँगा।