ज़िन्दगी तेरी कहानी SHUBHAM KALA
ज़िन्दगी तेरी कहानी
SHUBHAM KALAज़िन्दगी तेरी यह कैसी कहानी,
बयाँ न कर सकूँ जो अपनी जुबानी।
सपनों का बुन कर ताना-बाना
कट रही थी ये रातें सुहानी।
सपनों के रंगमहल को तोड़ा इस कदर,
जैसे मिट्टी पर फेर दिया हो पानी।
खैरात नहीं यह तो सालों की मेहनत थी,
फिर क्यों न मेरी मेहनत की कीमत जानी?
स्वीकार नहीं यह निराला खेल किस्मत का,
जिसमे दर-दर की ठोकरें हो खानी।
ये मेरा है-तेरा है सब भ्रम का जाल है,
वास्तव में ज़िन्दगी की असलियत अब पहचानी।
कर्म करते रहो निरंतर त्याग सब मोह-माया,
हृदय स्वच्छ हो जाएगा जैसे बहता पानी।
ज़िन्दगी तेरी बस यही कहानी,
बयाँ न कर पाऊँ इसे अपनी जुबानी।
अपने विचार साझा करें
कभी-कभी मनुष्य इतनी ज़्यादा सकारात्मक सोच रखता है कि वह नकारात्मक परिणाम को स्वीकार करने की शक्ति खो चुका होता है परन्तु जो किस्मत में लिखा हुआ होता है वही अंतिम सत्य है। अतः कविता यह दर्शाती है कि हमें बिना किसी आकाँक्षा के निस्वार्थ भाव से कर्म करते रहना चाहिए इसके उपरांत जितना भी मेहनत का फल मिलता है उसी में संतुष्ट रहना चाहिए।