उस्ताद की हिदायत  ABHISHEK TIWARI

उस्ताद की हिदायत

ABHISHEK TIWARI

इश्क़जादे का इश्क़ रात में देर तक क्यों जगता है,
अपनी आँखों का पानी बहा खुद को क्यों ठगता है।
माना की दिल्लगी खुद के बस में नहीं होती,
जान बूझकर महबूब की नज़रों में नहीं खोती।
 

पर ऐसे भी क्या टूटना की पुनः जुड़ ना पाओ,
दहकती यादो में बंद हो फिर खुल न पाओ।
कोई ना कोई रहमत फिर आएगी आपकी बाँहों में सिमट जाने को,
आपके जीवनरूपी चन्दन से सर्प जैसे लिपट जाने को।
 

कहता हूँ एक बात समझ लो बड़े ध्यान से,
सिर्फ कान से नहीं, बल्कि आपने ईमान से।
ज़ाया ना करो इश्क़े पागलपन शहर की एक जबीना के खातिर,
ये मुल्क तुम्हारे इंतज़ार में सदियों में बैठा है।

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