कविता Nirbhay Bharat BELLA
कविता
Nirbhay Bharat BELLAमैं कविता हूँ,
अभी-अभी जो तुम्हारी लेखनी से निकल कर
पन्नों पर अंकित हुई वो भावना हूँ।
मैं किसी की गुलाम नहीं पर
सबके दिल में रहती भावना हूँ,
लोगों ने मेरा साथ कई तरह से निभाया है,
कुछ ने नफरत फैलाई तो कुछ ने प्यार बढ़ाया है,
कुछ ने मेरा मान बढ़ाया तो कुछ ने शर्मसार किया है।
जब द्रौपदी की चिर खींची जा रही थी
तब मैं भी नग्न हो रही थी कहीं कविताओं में,
जब आज़ादी के दीवानों ने मुझे अपनाया था
तो मैं भी कहीं गौरवान्वित हो रही थी भावनाओं में।
मैं आभारी हूँ उनकी जिन्होंने मुझमें
राम देखा, रहीम देखा,
प्यार देखा, भाईचारा देखा,
देशभक्ति बढ़ाई, प्यार बढ़ाया,
पर बेइज्जत मैं भी हुई थी जब तुमने मुझसे
नफरत बढ़ाई, दुश्मनी जगाई,
धोखाधड़ी की, दुख बढ़ाया,
आओ मिलकर हम सब यह शपथ लें
अपनी आनेवाली पीढ़ियों को एक नया संसार दें।