एक ख़्वाब ने मुझे नींद से जगाया Atul Mani Tripathi
एक ख़्वाब ने मुझे नींद से जगाया
Atul Mani Tripathiकल रात वही ख़्वाब फिर आँखों में आया,
चुपके से नींद का दरवाज़ा खटखटा कर
इंसानियत का वही सवाल फिर से उठाया,
उस ख़्वाब ने मुझे असल नींद से जगाया।
बेटियाँ वो जिनके दूध के दाँत टूटे नहीं,
उनके साथ हुई दरिंदगी का मुझे एहसास दिलाया,
रोई होंगी वो भी ज़रूर कोशिश भी की होगी भरपूर,
उस तड़प के बस एक अंश ने मुझे भी रुलाया।
ये है इंसानियत जिसकी धज्जियाँ उड़ीं,
यही तो हैं देवियाँ जिनकी पूजा हुई,
फिर क्यों ज़िन्दगी उनकी एक शाप हो गई,
इस सवाल ने अब आईने को भी झूठा बताया।