महाभारत का बीज  Amrish Vats

महाभारत का बीज

Amrish Vats

धृतराष्ट्रों की नगरी में चहुँ ओर अँधेरा है,
सजे हुए हैं द्यूत स्थल, शकुनि की चौसर और पासों का फेरा है।
 

दिखा धर्म जो अधर्म परोसे उन अधर्मियों का घेरा है,
निरीहों की खाल नोच ले उन श्वानों का डेरा है।
 

रख अपना अभिमान अभंजित द्रुपद सुता फिर गरजेगी,
जब तक, जब तक, साँस चलेगी दुष्ट अधर्मी धृत पुत्रों की केशों की वेणी ना संवारेगी।
 

जब हाथ दुशासन का आँचल पर किसी द्रुपतसुता के जाएगा,
त्याग रूप नटखट माधव का, धर्मरक्षार्थ मधुसूदन ले सुदर्शन आएगा।
 

याद रखो, याद रखो, जब-जब नारी अपमान हुआ,
कुल नष्ट भ्रष्ट हुआ और महासंग्राम हुआ।
 

भू धरा रक्तिम हुई और सब शमशान हुआ,
अपमानित अम्बा के सम्मुख निष्फल इच्छा मृत्यु वरदान हुआ।
 

महाभारत का बीज रोप, चक्षु प्रज्ञा धृतराष्ट्र ने मन धर्म से फेरा है,
धृतराष्ट्रों की नगरी में चहुँ और अँधेरा है,
धृतराष्ट्रों की नगरी में चहुँ और अँधेरा है।

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