तलाश...अस्तित्व की Shikha Vivek Upadhyay
तलाश...अस्तित्व की
Shikha Vivek Upadhyayखुद को खुद में ही खो चुकी हूँ,
क्या थी वो अस्तित्व ही भूल चुकी हूँ,
यादों की खटखट सी बस आहट सी हुई,
और वो फ़साने वो सपना ज़िन्दगी का घुमड़ने सा लगा।
आईने में जो देखा
तो बीती यादों में खुद को कुछ अलग सा पाया,
हर रोज़ खुद को एक मकसद के साथ पाया,
ये जो बन्द सी पड़ी रफ्तार है ज़िन्दगी की,
उस ज़िन्दगी को इस ज़िन्दगी से बहुत तेज पाया।
हैरानी हुई खुद पे
क्या वो मैं थी,
या जो आज मैं हूँ, वो मै हूँ,
ये तो है मेरी समझ से परे,
पर कोई तो चाहत है जो अधूरी सी है,
ये जो ज़िन्दगी का सफ़र है उसमें कुछ कमी सी है,
यूँ ही नहीं कट सकता जीवन किसी मकसद के बिना,
हम अधूरे से हैं किसी मंज़िल के बिना।