याद-ए-असर सावन का सत्येंद्र चौधरी "सत्या"
याद-ए-असर सावन का
सत्येंद्र चौधरी "सत्या"छाता-छतरी काम ना आए,
रिमझिम वर्षा जब आती है,
फिसलन की सड़क,
दामिनी कड़क
जब बीच गगन बलखाती है।
बेड़ा कागज़ की नौकाओं का,
धारांगन में लहराती है,
घर में माता, अम्बर में घटा
सब इसे देख मुस्काती हैं।
नवयौवनों के लोलुप मन को
मद्धिम संगीत सुहाता है,
घनघोर घटा,
सावन की छटा,
हर यौवन को तड़पता है,
फिर छाता-छतरी क्या करे?
ऐसा सावन जब आता है।