चंद काग़ज़ के टुकड़े Rajat Sharma
चंद काग़ज़ के टुकड़े
Rajat Sharmaचंद काग़ज़ के टुकड़े कमाने की खातिर क्या-क्या होते देखा है,
बेटा घर से जा रहा है, माँ को दरवाज़े के पीछे रोते देखा है।
माँ-बाप की नींद गायब है गर्मी की रातों में,
बच्चों को दूसरे कमरे में एसी में सोते देखा है।
ना जाने इंसानों को कौन सी ताक़त पे नाज़ है,
सिर्फ तेज़ हवाओं से लोगों को ज़िन्दगी खोते देखा है।
वो जो किसानों की मेहनत का यूँ ही मज़ाक बना देते हैं,
क्या उन्होंने कभी उसे खेत मे बीज बोते देखा है?
उस आदमी को बाप की नौकरी से कभी फुर्सत मिली ही नहीं,
मैंने बूढ़े मज़दूर को सामान ढोते देखा है।