मै दीदार ए ताज कर रहा हूँ ARCHIT SHARMA
मै दीदार ए ताज कर रहा हूँ
ARCHIT SHARMAमोहब्बतों की खुशबुओं में
हसरत-ए-परवाज कर रहा हूँ,
खुद के कल को करके दफ्न
मैं जिंदा आज कर रहा हूँ।
रूखे दिल की खमोशी में
रूमानी आवाज भर रहा हूँ,
मैं उल्फत की ज़मीं पर हूँ
ज़मीं पर नाज़ कर रहा हूँ।
अंजाम-ए-इश्क़ ना जानूँ
पर आगाज़ कर कर रहा हूँ,
मैं दीदार-ए-ताज कर रहा हूँ,
मैं दीदार-ए-ताज कर रहा हूँ।