याद आते हैं वो दिन Shikha Vivek Upadhyay
याद आते हैं वो दिन
Shikha Vivek Upadhyayबहुत याद आते हैं वो दिन
जब बैठते थे हम यार सारे संग,
वो बैठ के रातोंरात गप्पे करना,
तो एक ही थाली में बैठ के मैगी पे टूटना,
वो एक ही ऑटो में एक के ऊपर एक का बैठना।
वो शाम को मेस की चाय की साथ में चुस्की लगाना,
जो आए किसी का जन्मदिन तो शुरू तैयारियों का सिलसिला,
पता चल ना जाए उसे क्या कर रहे उसके लिए,
इस एक बात के लिए झूठ पे झूठ का सिलसिला,
बहुत याद आते हैं वो दिन।
वो संगम का डांस,
तो शालिनी की हँसी,
शिवानी का सबको सँवारना,
तो स्वाति का सोना,
वो नूरी के श्रृंगार के नुस्खे,
वो सौम्या का पागल होना,
वो दादी का चिल्लाना,
बहुत याद आते हैं वो दिन।
वो कॉलेज में टीचर्स के नाम,
चुपके से टिफ़िन खाना,
एक दूसरे की अटेंडेंस के टाइम मुह बन्द कर देना,
तो एक के फ़ोन से कही भी मिस्ड कॉल कर देना,
बहुत याद आते हैं वो दिन।
आज हम सब साथ ना हो के भी साथ हैं,
वो यादों की बारात आज भी हमारे साथ है।
सब अपनी मंजिल की ओर चल दिए हैं,
पर दिल के कोने में सबका जिक्र सा होता है,
ये यारियां यारों अपनी कभी कम ना होंगी,
मिल के बैठेंगे सब यार फिर कभी,
तो यादें खुद ब खुद जी उठेंगी।