तेरी याद JASPAL SINGH
तेरी याद
JASPAL SINGHआज मैं फिर से तेरी याद भुलाने निकला,
जैसे शीशे से मेरा अक्स मिटाने निकला।
रुख-ए-तूफान था फिर भी समंदर में गया,
डूबी हुई किश्ती को मैं पार लगाने निकला।
उसको पा भी ना सका और भुला भी ना सका,
जो मेरे पास नहीं उसको गँवाने निकला।
सर्द रातों में भी कुछ कम ना हुई दिल की जलन,
आँसू पी पी के लगी आग बुझाने निकला।
रूह छलनी है, बदन छलनी, जिगर छलनी है,
दिल है जख्मों से भरा दर्द मिटाने निकला।
कत्ल कब से हुआ बस लाश लिए फिरता हूँ,
दफ्न कबरों से अभी आज ज़माने निकला।