अमर कथा  माधव झा

अमर कथा

माधव झा

इक अमर कथा बलिदानों की
हम तुम से कहते हैं,
कर याद जिसे नयन नीर बहाते हैं।
 

पावन सुखद समय सुहाया था
दिन बैसाखी का आया था,
मेला लगा था बागों में
थे मस्त मगन हो नाच रहे,
अपने अपनों को खुशियाँ बाँट रहे।
 

धरती ने अपनी काया पे
प्रेम प्रसून बिछाया था,
ढोल मृदंगों की तालों ने
अद्भुत जश्न मनाया था।
 

पहुँची खबर जब गोरों को,
ले अपने निज सैनिक दल-बल,
कर मौत का तांडव वह कायर
मानवता को शर्माया था हाँ
डायर ने गोली चलवाया था,
पावन मेला श्मशान बना वह
खूनी होली नहाया था।
 

कर याद अमर बलिदानों को
नयन नीर बहते हैं,
मातृभूमि के वीर सपूतों को
शत-शत नमन हम करते हैं।
 

फिर दमक उठी आज़ादी की चिंगारी
इन्कलाब के नारों पे,
चलती थी लाठियाँ मातृभूमि के लालों पर,
प्राण न्योछावर हँस हँस के कर गए वो
मातृभूमि के जयकारों पर।
इक अमर कथा बलिदानों की हम तुम से कहते हैं,
कर याद जिसे नयन नीर बहते हैं।

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