राख...जीवन का अंतिम पड़ाव Shikha Vivek Upadhyay
राख...जीवन का अंतिम पड़ाव
Shikha Vivek Upadhyayएक दिन सब राख हो जाना है,
इस शरीर को मिट्टी में मिल जाना है।
किस बात का गुरुर करना,
किस बात का द्वेष रखना,
कौन क्या ले के जाएगा,
जब सब एक दिन राख हो जाना है।
राग, द्वेष, क्रोध सब धरा रह जाएगा,
कुछ नहीं बचेगा सब राख हो जाएगा।
जो अगले पल भी साँस ले पाओ
तो शुक्रगुजार बनो खुदा का,
जी लो खुल के हर पल को,
कुछ नहीं बचेगा सब राख हो जाएगा।