मिले तो सही  JASPAL SINGH

मिले तो सही

JASPAL SINGH

उनको मिल पाने का कोई रास्ता मिले तो सही,
दयार-ओ-शहर मिले घर-ओ-पता मिले तो सही।
 

कौन कहता है दम मेरा घुटता है अब दुनिया में,
साँस लेने को मगर मौजे हवा मिले तो सही।
 

शब के गुमनाम अंधेरों का मुझे शौक नहीं,
शुया-ए-महर दिखे नूर-ए-सुबह मिले तो सही।
 

जख्म गहरे हैं पुराने हैं लाइलाज नहीं,
झटसे भर जाएँगे वो दर्द-ए-दवा मिले तो सही।
 

हाँ गुनहगार हूँ कि गैर को यार-ए-सादिक समझा,
मैं सजा वार हूँ हुक्म-ए-सजा मिले तो सही।
 

दिशा से भटके यूँ फिर भूल भुलैया मे खो गए,
लोट भी आएँगे फिर वो दिशा मिले तो सही।
 

फिर कभी कूचा-ए-याद-ए-यार से ना गुजरेंगे,
उन्हें भुलाने की कोई एक वजह मिले तो सही।
 

दयार-ओ-शहर - जगह और शहर
मौजे हवा - हवा की मौज
शब - रात
शुया-ए-महर - सूरज की किरण
नूर-ए-सुबह - सुबह की रोशनी
यार-ए-सादिक - सच्चा मित्र
सजा वार - सज़ा का हकदार
कूचा-ए-याद-ए-यार - यार की यादों की गलियाँ

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