बोतल की जीवनी Om Prakash
बोतल की जीवनी
Om Prakashवाह री बोतल तेरी बात निराली,
तेरे सृजनकर्ता को सौ-सौ ताली,
ना जाने है तू कितनों को संभाली,
तुम वैसी ही हो जैसे की घरवाली।
रूप तेरा अनोखा सा है, तेरे हैं कई रंग हज़ार,
छोटे-लंबे, मोटे-पतले, लेले तू चाहे जैसा भी हो आकार,
कभी साधारण बदन बने तेरा, कभी डिजाइनदार,
हर वर्ग के लोगों को सच में तुझसे है गहरा प्यार।
नन्हीं सी होती है जब तू बने माँ के लिए वरदान,
माँ जैसी तू ही तो रखती उसके बच्चे का ध्यान,
मेला हो या सभा हो कोई माँ का काम करे आसान,
चूसनी तेरी मुँह में डाले नन्हें करते तेरा दुग्धपान।
याराना तेरा सच्चा सा, यारी तेरी तगड़ी होती,
नन्हें जब बालक बन जाते तू भी साथ बड़ी होती,
जब कंधे बस्ता लटकाते, तू भी गले चढ़ी होती,
गर तू जो खो जाए उनसे, फिर नाक-भौंह सिकुड़ी होती।
चाहे जितने बड़े हो जाते, साथ तुझे हमेशा पाते,
कभी नीर तो जूस कभी, चाय और कॉफी रखवाते,
चार लोग और तू भी खाली, बड़े मजे से तुझे नचाते,
दिवाली में बालप्रिय तू, तुझ में ही रॉकेट उड़ाते।
घर से जब सब निकले बाहर, ट्रैफिक हो या ट्रेन,
मीठे तीखे सब हैं फीके, तू ही सबसे मेन,
तू ही जी की आग बुझाए, ठंड करे तो ब्रेन,
तू ना मिले तो जी चाहे, हम उड़ जाएँ बन प्लेन।
खाली करके तुझे फेंकते, ट्रेन सड़क पर बुद्धिमान,
उठा बोरी में तुझे डालते, कचरे वाले हैं इंसान,
तभी तो उनका पेट पालती, करती तू उनका सम्मान,
वापिस फिर तू घर-घर आती, चेहरे पर लाती मुस्कान।
नए युवक-युवतियों की भांति, तुझको भी जवानी आती,
तुझको पीकर झूमते-गिरते, बड़ी नशीली तू कहलाती,
जो तुझे छेड़ते नहीं छोड़ते, उनका घर-लीवर जलाती,
टूटे, सच्चे आशिक की साथी, गम तन्हाई में साथ निभाती।
साठ बरस के आस-पास, जीवन-धारा की बने तू आस,
अस्पताल के सभी मरीजों, डॉक्टर को तुझपे विश्वास,
तू जीवन-रक्षक रूपी प्यास, दवा-दारू का तुझमें वास,
तेरी लीला बड़ी खास, जब तक ना हम बन जाएँ लाश।