विरहन  Premlata tripathi

विरहन

Premlata tripathi

सीमा पर तैनात वीर पति को समर्पित

यह दहकती शाम है ज्यों दीप सी जलना मुझे,
दह विरह की आग में क्यों अब नहीं बुझना मुझे।
 

आस हरपल दीद का आँसू नयन बहते रहे,
संग धड़कन बन सजन की है सदा ढलना मुझे।
 

माथ बिंदिया भी नहीं भाये अधर की लालिमा,
देश हित तुम तो गये पिय अब नहीं रहना मुझे।
 

है निशानी कोख मेरे कर समर्पित राष्ट्र को,
मैं चलूँगी साथ साया बन यही कहना मुझे।
 

आहटें आती हवाओं से महकती हर सुबह,
गोलियों के नाद को सुन अब नहीं ढहना मुझे।
 

प्रेम अर्पित प्राण जीवन देश हित बलिदान कर,
मान अपना है तिरंगा अब नहीं झुकना मुझे।

 

आधार छन्द -   गीतिका
मापनी – 2122 2122 2122 212 (अंकावली)
अथवा – गालगागा गालगागा गालगागा गालगा (लगावली)

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1255
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com