विभावरी Premlata tripathi
विभावरी
Premlata tripathiमुक्तक
१
कली गली सजा रही चहक उठी विभावरी,
सुमन सुमन निखारती महक उठी विभावरी।
चली बयार पावनी उदास क्यों सुहासिनी,
सुना रही सुहाग री लहक उठी विभावरी।
२
निशा बिखेरती चली सुधा विमल निहारिका,
सुअंग अंग भीगते रही सजल निहारिका।
मिलन चली चकोरनी सुपथ भरे स्वरागिनी,
विरह वियोग को मिटा रही सकल निहारिका।
छंद मापनी - १२ १२ ×४