परिचय Surabhi Srivastava
परिचय
Surabhi Srivastavaपरिचय मेरा बताऊँ क्या कि कौन हूँ मैं,
जीवन के रंगों में रंगती एक नारी हूँ,
परिचय मेरा बताऊँ क्या कि कौन हूँ मैं।
बंजर धरती की खेती हूँ, सागर तीरे की रेती हूँ,
मेरा मन सागर सा गहरा, मैं तो सीपी की मोती हूँ,
परिचय मेरा बताऊँ क्या कि कौन हूँ मैं।
घर के आंगन की चहक हूँ मैं, अपने घर की किलकारी हूँ,
खट्टे मीठे सपने जीती, सखियों की परम प्यारी हूँ,
परिचय मेरा बताऊँ क्या कि कौन हूँ मैं।
रेगिस्तान की सूखी तृष्णा हूँ और तृप्ति का आभास भी मैं,
जंग लगे छन्दों से घुलकर मैं गीतों का विन्यास भी हूँ,
परिचय मेरा बताऊँ क्या कि कौन हूँ मैं।
प्रेम में खोती धारा मैं, अपने सागर का किनारा मैं,
हूँ राधा का मैं प्यार अगर, सीता का अमर महावर भी,
परिचय मेरा बताऊँ क्या कि कौन हूँ मैं।
मैं मोम की तपती पिघलन हूँ, मैं बर्फ की ठंडी सिहरन हूँ,
फूलों का सजता चितवन मैं, हर बगिया का मैं सावन हूँ,
परिचय मेरा बताऊँ क्या कि कौन हूँ मैं।
जेठ की भीषण गर्मी मैं, भादों का गिरता सावन भी,
पूस का घना कुहासा भी, वासंतिक धूप सुहावन भी,
परिचय मेरा बताऊँ क्या कि कौन हूँ मैं।
ममता की सजल सी मूरत हूँ, अनुसूइया माँ की सूरत हूँ,
शिवा कहूँ श्रृंगार अगर, भवानी का संहार भी मेैं,
परिचय मेरा बताऊँ क्या कि कौन हूँ मैं।
पिता की खिलती आशा मैं और किसी के घर की भाषा मैं,
तुझमें भी मैं, मुझमें भी मैं, मैं नभ, जल थल की श्वास हूँ,
परिचय मेरा बताऊँ क्या कि कौन हूँ मैं।
जीवन के रंगों में रंगती एक नारी हूँ, एक नारी हूँ।
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इस कविता के माध्यम से मैं एक नारी का सांसारिक परिचय देना चाहती हूँ। कहते हैं एक बालिका जन्म लेती है और दोस्त, प्रेयसी, पत्नी, माँ, ऐसे विभिन्न चरणों से होकर एक जीवन को एक जीवन प्रदान करती है। मेरी यह कविता मेरे शब्दों के माध्यम से नारी जीवन को दर्शाने का एक प्रयास है।