स्वर्णिम प्रभात  Premlata tripathi

स्वर्णिम प्रभात

Premlata tripathi

रंगरेज चुनरिया रंग दो, प्रीतम के घर जाना है,
पाँव पैजनी घूँघर वाली, सज सजना को पाना है।
 

रंगत लाली अधर सुहाए, उलझ रही अलकों में थी,
लाज भरे नैना पट खोले, जग की रीति निभाना है।
 

घनी साँवरी रात डग भरे, शनैः शनैः ले अँगड़ाई,
कनक हिंडोले चढ़ी सजनिया, पिय को आज रिझाना है।
 

सपने देखें नयन प्रीति के, मुखरित हो अँगनाई,
मंगल बेला ब्रम्ह मिलन की, मनको मिला खजाना है।
 

चटक सयानी झूमे डाली, गमक उठा जब मलयानिल,
पीहर से पिय द्वार चली अब, कण-कण मुझे सजाना है।

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