क्रांति का आह्वाहन  Kaushalesh Rajput

क्रांति का आह्वाहन

Kaushalesh Rajput

कब का सूर्य उदित हुआ,
अब तो उठ सोए हुए नौजवान,
परिणाम के भय से
कब तक नहीं देगा इम्तिहान।
 

बन क्रांतिदूत!
इक नई समग्र क्रांति की
आवश्यकता राष्ट्र को है,
इक और महाभारत की आकाँक्षा,
कलियुग के धृतराष्ट्र को है।
 

प्राक सभ्यता, संस्कृति,
खत्म होने की कगार पे है,
अब तू नहीं करेगा
तो कौन करेगा इनका अभ्युथान,
कब का सूर्य उदित हुआ ,
अब तो उठ सोए हुए नौजवान,
परिणाम के भय से,
कब तक नहीं देगा इम्तिहान।
 

तेरी बाँहों में है शक्ति असीम,
अपने मस्तिष्क में तू रखता है
समाधान हर समस्या का,
अब तुम्हें ही देना है फल,
शहीद हुए महापुरुषों की
कठिन तपस्या का।
आज संसद की शोभा
बन कर रह गया है संविधान,
कब का सूर्य उदित हुआ
अब तो उठ सोए हुए नौजवान,
परिणाम के भय से
कब तक नहीं देगा इम्तिहान।
 

अब प्रलय हो या फिर
अद्धभुत परिवर्तन हो,
जो तुझमें छुपे हुए हैं "कौशल"
उन सबका बृहत् प्रदर्शन हो।
ऐसा आदर्श प्रस्तुत कर
कि भ्रष्ट मानसिकता का
मिट जाए नामोनिशान,
कब का सूर्य उदित हुआ
अब तो उठ सोए हुए नौजवान,
परिणाम के भय से
कब तक नहीं देगा इम्तिहान।

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