किस्मत Nitish Kumar Soni
किस्मत
Nitish Kumar Soniएक सुबह किस्मत
मेरा दरवाजा खटखटा रही थी,
मैं सोया था, वो शायद
मुझे जगा रही थी।
मैं सोया रहा
वो जगाती रही,
मेरा दरवाजा
खटखटाती रही।
मैं गहरी नींद में सोया था,
मैं मीठे ख्वाबो में खोया था।
नींद खुली तो सामने घड़ी पड़ी थी,
जो टिक-टिक कर
बंद हो गई थी।
ये शायद किस्मत ही थी
जो घड़ी बदलते अब घड़ी बन गई थी।
घड़ी देखा तो पता चला,
आज का एग्जाम छूट चुका था,
सेशनल में 15 में 14 लाने
का सपना अब टूट चुका था।