बहुत पढ़े लिखे आदमी हो भाई !  SHRIYANSH SRIVASTAVA

बहुत पढ़े लिखे आदमी हो भाई !

SHRIYANSH SRIVASTAVA

क्यों जी क्या जानते हो?
बहुत सुना है तुम्हारे बारे में,
बहुत पढ़े लिखे हो,
डॉक्टरी कर लिए
बड़े रिसर्चर हो,
बड़े कॉलेज से पढ़े हो,
हाई स्कूल इंटर में डिस्टिंक्शन है,
डिस्ट्रिक्ट टोपर हो,
हमारे बच्चे को भी कुछ सिखाओ।
 

हाँ जी यह सब तो सही कहा आपने
पर आपको सच बतलाता हूँ,
इतना सब कुछ पढ़ के,
किताबों में घिस के,
लैब में आँखे गड़ा के,
मैंने सोचने का नया नज़रिया पाया,
किसी चीज़ को तौलने का तरीका आया।
लिखकर समझना और समझ कर लिखना,
हो न जब तक प्रमाण,
तब तक सही नहीं अनुमान।
काम का बेड़ा अगर उठाया,
पूरा करके ही घर को आया,
अंदर से निकलता बड़ों के लिए सम्मान,
उम्र नहीं झुकाती, झुकाता उनका ज्ञान।
अलग-अलग ख्याल का करना उतना स्वागत,
जैसे उस ख्याल में लगी हो अपनी लागत,
मानव-मानव में नहीं करना भेद,
गलती हो तो नहीं करना अत्यंत खेद,
सीख कर आगे है बढ़ना यही असल भेद।
और भी बहुत कुछ सीखा,
मज़ा भी बहुत किया कुछ मीठा कुछ तीखा।
 

पर क्या आपको भीतर का सच जानना है?
बताइए कहूँ? सुनेंगे?
थोड़ा इधर आईए, बच्चा नहीं समझ पाएगा,
वो सिर्फ सुनेगा और शायद आप भी,
पर फिर भी बता देता हूँ
वास्तव में मैं कुछ नहीं जानता।
 

हाँ मै अंदर से खाली हूँ,
ढोलक जैसा होता है न
ठीक वैसा ही,
बस थाप मारो, बजूँगा,
काम दो करूँगा,
उन किताबों में कुछ नहीं था,
बस सब कुछ लिखा हुआ था।
पढ़ना और समझना था,
कभी-कभी अप्लाई करना था,
जैसे कभी सीखकर डोसा बनाते हैं न
ठीक वैसे ही,
भीगना नहीं था,
उल्लास से सराबोर नहीं था।
 

फिर एक दिन उपनिषद आई,
साथ में ज्ञान वाणी, अष्टावक्र गीता भी आई,
कहाँ और कैसे आई वही जानतीं हैं,
पर मुझे ज़रूरत थी
और ये बात उन किताबों को पता थी,
उस दिन से जो भीगा हूँ,
जून की गर्मी भी नहीं सुखा पाई मुझे,
और भीगता जाता हूँ हर पल,
पर गीलेपन का एहसास नहीं
सिर्फ आनंद भीगने का।
 

शंकर भगवान और आचार्य
दोनों को करता हूँ नमन,
असल यही बताना था आपको,
उन डिग्रीयों से मिलेगा
रोटी कपड़ा मकान,
पर नहीं खिलेगा अन्तः फूल
बस खुल जाएगी दुकान।
 

यही बताना आप बच्चे को
जब वो पहुँचे उस मक़ाम,
जीवन में अंदर बाहर दो हैं आयाम।
बस अब चलता हूँ
बारात आने वाली है,
करना है थोड़ा काम,
नमस्ते !

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