अनहोनी  SHUBHAM KALA

अनहोनी

SHUBHAM KALA

ख़ुशी का ठिकाना ना रहा था,
जब सुना घर में नया मेहमान आने को है,
पल-पल सपने संजोते रहा मन,
सोच कर कि घर में नया मेहमान आने को है।
 

उत्सुकता के भंवर में डूबकर,
सोचा कोई घर में किलकरियाँ लाने को है,
जिस समय का बेसब्री से इंतज़ार रहा,
घटित हुआ ऐसा लगा सबकी जान जाने को है।
 

पल भर में सब सपने चकनाचूर हुए,
दरकिनार कर सब ख्वाब लगा क्या खोने क्या पाने को है,
बधाईयाँ सांत्वना में तब्दील हो गईं,
व्याकुल हृदय, खून भरे अश्रु, लगा क्या यही सब होने को है।
 

परन्तु प्रश्न मेरा भी एक उस ईश्वर से है,
यह सत्य है जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु निश्चित है,
पर क्या उस नन्ही सी जान को जन्म से पहले ही
काल के मुँह में धकेलना उचित है?
 

क्षण भर में माँ की ममता को खंडित किया,
गर्भ में भगवान की उपस्थिति के भ्रम को दूर किया,
नि:शब्द मेरे मुख को कर,
कलम उठाने पर मजबूर किया।

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