अनहोनी SHUBHAM KALA
अनहोनी
SHUBHAM KALAख़ुशी का ठिकाना ना रहा था,
जब सुना घर में नया मेहमान आने को है,
पल-पल सपने संजोते रहा मन,
सोच कर कि घर में नया मेहमान आने को है।
उत्सुकता के भंवर में डूबकर,
सोचा कोई घर में किलकरियाँ लाने को है,
जिस समय का बेसब्री से इंतज़ार रहा,
घटित हुआ ऐसा लगा सबकी जान जाने को है।
पल भर में सब सपने चकनाचूर हुए,
दरकिनार कर सब ख्वाब लगा क्या खोने क्या पाने को है,
बधाईयाँ सांत्वना में तब्दील हो गईं,
व्याकुल हृदय, खून भरे अश्रु, लगा क्या यही सब होने को है।
परन्तु प्रश्न मेरा भी एक उस ईश्वर से है,
यह सत्य है जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु निश्चित है,
पर क्या उस नन्ही सी जान को जन्म से पहले ही
काल के मुँह में धकेलना उचित है?
क्षण भर में माँ की ममता को खंडित किया,
गर्भ में भगवान की उपस्थिति के भ्रम को दूर किया,
नि:शब्द मेरे मुख को कर,
कलम उठाने पर मजबूर किया।
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वर्तमान परिदृश्य में जहाँ तकनीकी नए आयाम स्थापित कर रही है वहीं समाज का एक वर्ग आज भी ऐसा है जो तमाम प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है। जब नौ माह तक कोई माँ गर्भ मैं शिशु का पालन पोषण करती है तो सब कुछ भगवान के ऊपर छोड़ देती है चूँकि अपनी ओर से वो पूरे प्रयास करती है, किस तरह शिशु को स्वस्थ रखा जाए, परन्तु वास्तव में गर्भ के अंदर शिशु किस अवस्था में है या कौन सी परेशानी से जूझ रहा है, उससे एक सामान्य माँ अनभिज्ञ रहती है। इस तरह कहा जाता है कि गर्भ में शिशु का पालन पोषण भगवान की उपस्थिति का एक प्रमाण है परन्तु वर्तमान युग में समस्त सुविधाओं के बावजूद शिशु मृत्यु दर नियंत्रण से बाहर है। अतः कविता के माध्यम से उस माँ के दर्द को शब्दों में पिरोने की कोशिश की गई है जिसके सब सपने एक पल में चूर हो गए, आशा निराशा में परिवर्तित हो गई जो इस गम को कभी भुला नहीं सकती।