आपकी नाराज़गी Praveen Kumar
आपकी नाराज़गी
Praveen Kumarइतनी खफा किस लिए,
मुझसे ही वफ़ा किस लिए,
है अगर कोई शिकवा तो खुल कर कह,
यूँ बसंत में गुलाब मुरझाया किस लिए।
ये फूलबाग में फुलवारी किस लिए,
तेरी सूरत इन फूलों से प्यारी किस लिए,
अब के मौसम में हर कली मुस्कुराने लगी,
फिर तेरी गालों की लाली किस लिए।
बुरा हूँ पर बुरा किस लिए,
सच बयाँ किया क्या इसलिए,
हो अगर मोहलत तो मुझे माफ़ कर,
यूँ पूर्णिमा को चाँद छिपा किस लिए।
बसन्त में ये खुशहाली किस लिए,
पेड़ों पर हरी भरी डाली किस लिए,
अब तो मीठी कोकिला भी कूँ-कूँ करने लगी,
फिर तुम्हारे होठों की खामोशी किस लिए।
बहुत हो गया, कुछ तो बोलो,
अपने कमल के कपोलों को जरा सा तो खोलो,
जो दिल में हो तो बयाँ कर दो,
तेरी हाँ और मेरी ना में ये सवाली किस लिए।