यथार्थ  Pawnesh dixit

यथार्थ

Pawnesh dixit

कलाकार का सपना,
समाजसेवी का धरना,
पार्टियों का लड़ना,
सब बंद है एक विचित्र कोलाहल में।
जिसमें जीवन भौंरा बनकर गुनगुनाता है,
सुनकर पकड़ना जो चाहे इसे
तितलियाँ उड़ती हुई दिखाई देती हैं,
बादल गरजते दिखाई देते हैं,
सुनहरी धूप एकदम से निकलती आती है
और आँखें पल में ठण्डी हो जाती हैं।
अचानक घर की याद आती है,
रम जाता है, खो जाता है खुद के जीवन में,
चहारदीवारी में चार अपनों की आवाजें आती हैं,
चुपके से सोने की तैयारी में वह जुट जाता है।
अब सोता हुआ भौंरा धीरे-धीरे उठ जाता है,
दोनों जीवन अपने-अपने रास्तों पर चल पड़ते हैं,
एक गुनगुनाने के लिए दूसरा रेंगने के लिए,
सह आस्तित्व को चुनौती देते हुए।

अपने विचार साझा करें




1
ने पसंद किया
1342
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com