ऐ प्राण! किधर है तू! Pawnesh dixit
ऐ प्राण! किधर है तू!
Pawnesh dixitऐ प्राण! किधर है तू!
खोजते हैं सब
तेरा सामर्थ्य है क्या,
बस इतना कि शरीर को जगा देता है
कुछ पल के लिए।
ये पल सेकंड,
मिनट, घंटे, दिन, महीने और कई साल
हो सकते हैं,
कभी एक सदी भी पार कर जाते हैं,
नहीं पार होता है तो जीवात्मा का जीवन
जो स्वयं में ही पूरा नहीं है।
प्राण का ही खेल है सारा इस मृत्युलोक में,
समाप्ति की उद्घोषणा
केवल चुपचाप नियति का रूप लेकर
हमारे सामने आती है,
और जीवन एक नए जीवन की तलाश में
मौत के रूप में स्वीकृत
हो जाता है।