बेबस माँ  Pawnesh dixit

बेबस माँ

Pawnesh dixit

बच्चा जब रोता है,
माँ को याद आता है,
है मेरे ही बदन का एक टुकड़ा,
कैसे संभालूं कैसे पकड़ूँ,
अब बर्दाश्त नहीं होता
आटे से सने हुए अपने ही हाथों को देखकर,
सब भूखे हैं मालूम है मुझे,
सब भूखे रहते हैं ये भी जाना है मैंने,
केवल बच्चे को छोड़कर
क्योंकि उसका रुदन हर पल
इतना छोटा होता जाता है,
रोकर ही उसका पेट धीरे-धीरे भर जाता है।
क्या करूँ उसकी आंतें भी तो इतना नहीं कुलबुलाती
जो मुझे सुनाई दें, क्या चाहता है क्या मांगता है,
इन भूखे लोगों के बीच।

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