रक्तरंजित सा वह  Pawnesh dixit

रक्तरंजित सा वह

Pawnesh dixit

रक्तरंजित सा वह मनुज
भागता हुआ आ पहुँचा,
कुछ कहना चाहता है बड़ी शिद्दत से,
कोई तो है जो उसे रोक रहा है,
पर कहाँ है वह?
क्या पोशाक है?
कहाँ शरीर है?
कितना आवेग है,
कुछ भी तो पता नहीं।
फिर भी माना जाय कि उसका आस्तित्व है,
इसी पल इसी वक़्त वह
पूरी बात कह न पाया,
हलक से चला था पूरी ज़ुबाँ तक आ गिरा,
बस पूरी बात कहने से चूक गया,
शायद दिल और दिमाग के बीच का रास्ता
छोटा पड़ गया था,
बेचारा रक्तरंजित दोषी हो गया इस सब में,
लोग आपस में कह रहे थे
हिम्मत हार गया वर्ना बंद राज आज खुल ही जाता
और हम धन्य हो जाते।

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