कान्हा की लम्बी चोटी  Sanjay Gupta

कान्हा की लम्बी चोटी

Sanjay Gupta

ज्यों आसमाँ की कोई काली घटा
झुक गई हो मानो जमीं को चूमने,
या कोइ काली नागिन लिपट तेरे
बदन से लग गई है झूमने।
 

ज्यों शिव ने तपस्या से प्रसन्न होकर
दे दिया है जटाओं का दान,
या वट वृक्ष कि कोई शाखा
ले रही हिलोरे, पाकर जीवन प्राण।
 

ज्यों इनमें सिमट गया है गंगा का
हिमालय से सागर तक का विस्तार,
या ये हो गई है उतनी ही लम्बी
जितना करती मैं कान्हा से प्यार।

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