चाँदनी रात  Premlata tripathi

चाँदनी रात

Premlata tripathi

चाँदनी रात में घूम आओ कभी,
राग में गीत को गुनगुनाओ कभी।
 

नेह के आस में बीत जाए न पन,
प्रीत की रीति को तुम निभाओ कभी।
 

सो रहे भूख से पथ किनारे पड़े,
भूख जाकर किसी की मिटाओ कभी।
 

नेक राहें अलग प्यार के भाव तुम,
बैठ मन चाँदनी से सजाओ कभी।
 

सोचना है तुम्हें यदि खुशी बाँटना,
मन नहीं तुम किसी का दुखाओ कभी।
 

लोग उपहास करते बिना बात पर,
राज मन के नहीं तुम बताओ कभी।
 

नित सुबह शाम हो छंद की साधना,
प्रेम को छंद जीवन बनाओ कभी।
 

आधार छंद- वाचिक स्रग्विणी 

मापनी- 212 212 212 212

अथवा- गालगा गालगा गालगा गालगा 

समांत- आओ, पदांत - कभी

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