मम्मा तुम गुड़िया बन जाओ  Vandana Namdev Verma

मम्मा तुम गुड़िया बन जाओ

Vandana Namdev Verma

मम्मा तुम गुड़िया बन जाओ
मैं मम्मा बन जाती हूँ,
पास मेरे आकर बैठो
मैं तुमको खेल खिलाती हूँ।
 

उसकी बाल छवि को देख
मैं दंग कभी रह जाती हूँ,
सुनकर उसकी बातें गहरी
मैं उसमें ही खो जाती हूँ।
 

मुझको अपने पास बिठाकर
बालों को मेरे सुलझाती है,
जब बोलूँ लगता है सिर में
बातों में अपने उलझाती है।
 

देख के उसकी चंचलता ये,
मैं उमंगों से भर जाती हूँ,
भरकर उसको बाहों में
मैं ममता से घिर जाती हूँ।
 

कल तक जो छोटी सी थी
आज स्कूल अकेले जाती है,
वापस घर आते ही पहले
सारी बातें बतलाती है।
 

अपने खेल खिलौनों में
मुझको शामिल कर लेती है,
देकर मुझे नकली इंजेक्शन
खुद डाॅक्टर बन जाती है।
 

बोलूँगी जब पढ़ने बैठो
जल्दी होमवर्क कर लेती है,
गीत कहानी मुझे सुनाकर,
फिर टीचर मेरी बन जाती है।
 

कभी शरारत करती है जब
और मैं गुस्से में रहती हूँ,
यदि उसको डांट डपट कर दूँ,
फिर सारा दिन पछताती हूँ।
 

लाडली है पापा की अपने
पापा की बातें करती है,
जब होती है संग पापा के
फिर नहीं किसी की सुनती है।
 

उसकी चंचल मीठी बातें
मन मोह सभी का लेती हैं,
उसकी मासूम अदायें भी
मुस्कान सभी को देती हैं।
 

मम्मा तुम छोटी बन जाओ
मैं तुमसे बड़ी बन जाती हूँ,
खेल-खेल में कर के जिद
सारी बातें मनवाती है।
 

मम्मा ये बन जाओ, वो बन जाओ,
दिनभर मुझको नाच नचाती है,
तेरे लिये सब कुछ अर्पण है
बस मन ही मन कह जाती हूँ।
 

देख के उसका प्यारा बचपन
मैं बचपन में खो जाती हूँ,
उसकी न्यारी बातें सुनकर
मैं हर्षित पुलकित हो जाती हूँ।
 

देख के उसकी निच्छल मुस्कान
मैं जीवन को धन्य पाती हूँ,
फूलों सा महके उसका जीवन
बस दिल से दुआएँ देती हूँ।

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