जब तू गया अदिति शर्मा
जब तू गया
अदिति शर्माआँधियों ने बुझा दी है जो पिया,
तू लौटकर आ वापस वो शम्मा जला,
मैं सज़ा काट रही ये किस जुर्म की,
मुझे ये तो बता मेरा गुनाह है क्या।
मेरी रग-रग में तेरा ज़हर बह रहा,
ज़माना मुझे आवारी कह रहा,
तूने बीते दिनों जो किए थे सितम,
उन्हें आज भी दिल बिन रुके सह रहा।
हर घड़ी हर पहर मैं कई मौतें मरी,
तेरे खातिर खुदा से दुआएँ करी,
तेरी ख़ुशी को दुआओं में शामिल किया,
खुद चाहे मेरी हो आँखें भरी।
क्या करूँ ऐसा जो तुझको दिखाई पड़े,
कि मेरा दिल रात-दिन आतिश में जले,
बड़े ही आराम से आगे बढ़ गया तू,
मुझे तो बरसों हुए यहीं खड़े-खड़े।
ज़िन्दगी ने सिखा दी मुझे भी ये बात,
कि खानी पड़ती है मोहब्बत में मात,
टूटा दिल तो बिखर कर मैं रह गई,
समेटना चाहूँ जो टुकड़े तो छिल जाते हैं हाथ।
तुझसे वफा की तो खुद से बेवफा मैं हुई,
कब खुद से ही इतनी खफा मैं हुई,
तेरी मोहब्बत आँखों का धोका थी बस,
जिसमें ज़लील ही सिर्फ हर दफा मैं हुई।
अक्ल से पर्दा गलतफहमी का जो हटा,
हकीकत का मंज़र तब साफ़ दिखा,
गिरी ऐसे थी मैं तेरे प्यार में सनम,
अपनी नज़रों में अब होना होगा खड़ा।
तेरे पीछे मैं भागूँ मोहब्बत लिए,
इतने अच्छे भी तूने कुछ करम न किए,
तू जो गया है तो खुद को सँवारूँगी मैं,
देख कैसे मैंने अपने सब ज़ख्म सिए।