पैगाम -ए-मोहब्बत Tilak raj saxena
पैगाम -ए-मोहब्बत
Tilak raj saxenaकोई रूठा हुआ है मुझसे
उसे कैसे मनाऊँ मैं,
वो दिल के पास है कितना
उसे कैसे बताऊँ मैं।
उदास होता है जब वो
तो दिल मेरा रोता है,
इन आँखों से बहते अश्क
उसे कैसे दिखाऊँ मैं।
मोहब्बत उसको ही नहीं
मुझको भी है उससे,
मगर इस बात का यकीं
उसे कैसे दिलाऊँ मैं।
मिलना है अगर किस्मत में
मिल ही जाएँगे हम दोनों,
दुनिया है बड़ी ज़ालिम
उसे कैसे समझाऊँ मैं।
सिसकते हम भी रातों में
तकिये पे सर रखकर,
अब हर बात का ऐतबार
उसे कैसे कराऊँ मैं।
परेशां कितना करता है
वो अक्सर ख्वाबों में मुझको,
कहते लाज आती है
लबों पे कैसे लाऊँ मैं।
हर रात चाँद से कहती हूँ
मेरा पैगाम दे तुझको,
नहीं सुनता अगर चाँद
तो तुझे कैसे सुनाऊँ मैं।