ज्योति Premlata tripathi
ज्योति
Premlata tripathiकलिका तन मैं
हर आँगन की
तुलसी हूँ मैं
क्यारी घन की।
खिली रागिनी,
निखर यामिनी,
सरस सारिका,
वाणी धन मैं --
मुखरित मन की।
उड़ी गगन जो
हृदय लगन जो
शिखर छू रही
पंख लगा मैं --
महक सुमन की।
अष्ट भुजा हूँ,
ममता माँ हूँ,
दीप शिखा सी,
ज्योति प्रखर मैं --
प्रेम सृजन की।