प्रेम  Premlata tripathi

प्रेम

Premlata tripathi

स्वप्न नयनों में समाया,
कौन मनके द्वार आया,
गूँजती सूने अयन में,
आह उसने फिर जगाया।
 

धड़कनों को रोक लेती,
श्वांस देकर क्यूँ लुभाया,
दर्द रिश्तों में जगाकर,
प्रीति को पावन बनाया।
 

ढल गया जो गीत बनकर
फिर लगन ऐसी लगाया,
दूरियाँ मन की मिटादे,
प्रेम जीवन ने सिखाया।

मापनी - 2122 2122
समांत- आया अपदांत

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