एक सच्चाई (हक़ीकत) Tilak raj saxena
एक सच्चाई (हक़ीकत)
Tilak raj saxenaउमंगों से दूर-दूर तक मेरा कभी
सपनों में भी वास्ता ना था,
एक तुम क्या मिले मौसम बदल गया,
जिन ख़्वाबों देखने से डरता था
उन्हीं ख़्वाबों के लिए दिल मचल गया।
आ छुपा लूँ तुझे मैं बाहों में कि
डर ये लगता है कोई छीन न ले तुझको,
पहले तो जी लिया मैं जैसे भी जिया
अब चैन कहाँ एक पल भी तेरे बिना मुझको।
डर ये भी है बदल कर मेरी ज़िन्दगी
कभी तुम बदल ना जाना,
कहीं ऐसा ना हो लोग पत्थर मारे
और कहें, वो जा रहा है देखो दीवाना।