स्पर्धा और ज़िन्दगी Tilak raj saxena
स्पर्धा और ज़िन्दगी
Tilak raj saxenaकुछ वर्षों पहले कितनी
आसान ज़िन्दगी थी,
तब प्रेम हुआ करता था
कोई स्पर्धा ना थी।
आज हर शख्स
स्पर्धा में जी रहा है,
एक ख़ूबसूरत जिंदगी की
तमन्ना दिल में लिए,
जिंदगी को ही
बोझ बनाकर ढो रहा है।
अपनी इसी तलाश में
उसे पता ही नहीं कि
वो धीरे-धीरे अपना
हर रिश्ता खो रहा है,
कोई दौलत की दौड़ में
कोई शौहरत की दौड़ में
बड़ा मशगूल हो रहा है,
और मासूम बचपन
पढ़ाई की होड़ में आज
अपना बचपन खो रहा है।
वर्तमान ख़ुशियों की लाशों पर
भविष्य के सपने संजो रहा है,
ख़ूबसूरत ज़िन्दगी को
बोझ बनाकर ढो रहा है।
जिंदगी बहुत खुबसूरत है
शिद्दत से महसूस कीजिए,
महत्वाकांक्षा भी पालिए
स्पर्धा भी किया कीजिए।
पर कभी-कभी अपने लिए
कभी अपनों के लिए भी,
कुछ वक्त दिया कीजिए।