कुत्ता  Harshit Kumar Pandey

कुत्ता

Harshit Kumar Pandey

एक निवाला फेंक जो देते
तो क्या धन से घट जाते,
यूँ ही तादाद हमारी थी
टुकड़े टुकड़ो में बँट जाते।
 

एक दिवस जो पड़ेगी रोटी
क्या है यही तुम्हारी सोच?
दुम हिलाता आ जाए फिर,
परक न जाए कुत्ता रोज!
 

यही प्रकृति जो रही तुम्हारी
तो नज़रो में भी दुष्ट रहूँगा,
नहीं निवाले के दरसन हों,
फिर भी मैं संतुष्ट रहूँगा।
 

नहीं पेट से ज्यादा रखने
का संताप हमारा है,
बस कुत्ता बनकर आए हैं
इतना पाप हमारा है।
 

नहीं घास अपने प्रवृति में
चोरी से चोकर क्यों खाते?
घर-घर रोटी की लालच में
दर-दर की ठोकर क्यों खाते?
 

जो दुत्कार का आदि है
स्थान मिले न कब चाहे?
चौखट की चारदीवारी का
मलिकार मिले न कब चाहे?
 

नहीं तुम्हारे जैसा हूँ जो
पाछे काम के दो दुत्कार,
मैं खाता हूँ जिसकी रोटी
उसका आजीवन वफादार।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
851
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com