ऐ मन! तू मत हार Babita Kumari
ऐ मन! तू मत हार
Babita Kumariक्या हुआ अग़र
तू रह गया अकेला,
क्या हुआ अग़र
तू रहा असफ़ल,
क्या हुआ अग़र
तेरी कोशिश नाक़ाम रही,
क्या हुआ अग़र
दौर संघर्ष का बढ़ गया,
कुछ वक्त अभी बाकी है
फिर जूझने को कर वार,
ऐ मन! तू मत हार।
क्या हुआ अग़र
ग़म ही साथी है,
क्या हुआ अग़र
तेरी हँसी उड़ रही है,
क्या हुआ अग़र
डसता है खालीपन,
क्या हुआ अग़र
कुछ रास नहीं आता,
करने को मौन तपस्या
हौसले अतीत से मिलेंगे हज़ार,
ऐ मन! तू मत हार।
क्या हुआ अग़र
ये वजूद खो रहा,
क्या हुआ अग़र
कोई साथ छोड़ रहा,
क्या हुआ अग़र
अब ढांढस नहीं बंधती,
क्या हुआ अग़र
अब आँसू नहीं रुकते,
तू ख़ुद को ना भुला, तू खुद को ना छोड़,
ज़िद है तेरी तू उतरेगा पार,
ऐ मन! तू मत हार।
क्या हुआ अग़र
कहीं तरसती आँखें सूख गई,
क्या हुआ अग़र
उनका सीना छलनी हो गया,
क्या हुआ अग़र
अपनी कोशिश भी मिथ्या है,
क्या हुआ अग़र
हर मंज़र बिखरा है,
रहना है तब भी समर में
यही है जीवन का सार,
ऐ मन! तू मत हार।
क्या हुआ अग़र
सपनों के पर नहीं,
क्या हुआ अग़र
फर्श से अर्श क्षितिज ही रहा,
क्या हुआ अग़र
अपनों की हर आस गई,
क्या हुआ अग़र
अब जीना भी भारी है,
लहू के हर कतरे में
जब तक है साँसों की तलवार,
बस तबतक, ऐ मन! तू मत हार।
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जीवन के अगणित उतार चढ़ाव में कभी हार तो कभी जीत का सिलसिला चलता रहता है। कभी खुशियों की महफ़िल, तो कभी अकेलेपन की वीरानी भी झेलनी पड़ती है, मगर जीवन के अच्छे-बुरे हर वक़्त में स्वयं का हौसला आसमाँ की तरह बनाकर रख पाना बेहद ही मुश्किल होता है। और इस मुश्किल की घड़ी में खुद का साथी खुद को बनाकर ही जंग जीतने की हर तैयारी करनी पड़ती है, यही मनुष्य का जीवन है और यही मानवधर्म भी।