उलझन  Tilak raj saxena

उलझन

Tilak raj saxena

हमें कहना नहीं आया
वो कभी कह नहीं पाए,
रहे दोनों उलझन में
इशारे ना वो समझ पाए
ना हम समझ पाए।
 

चाहतों के गहरे भंवर में
डूबे थे हम दोनों,
धड़कते थे दिल दोनों के
एक-दूजे की मुहब्बत में।
 

खता बस इतनी हो गई
कभी दिलबर से अपने
राज़-ए-दिल खुल कर
ना जाहिर वो कर पाए
ना जाहिर हम कर पाए।
 

वक्त गुज़र गया यूँ ही
ना चाहतें बयां हुई,
आखिर एक दिन
रास्ते दोनों के हुए अलग
और मुहब्बत जुदा हुई,
गिला फिर कोई
ना वो हमसे कर पाए
ना हम उनसे कर पाए।
 

उस वक्त आँखें दोनों की
अश्कों में डूबीं थीं इतनी,
कि शक्ल एक दूजे की
हम फिर देख नहीं पाए।

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