खुले उरेज Naman Joshi
खुले उरेज
Naman Joshiएक कोहरे की गहराई में
बैठ गई कोई स्तन खोले,
कांप उठी तब नीली गेंदे
कुल्टी, वैश्या, मस्तन बोले।
मचल गया धन्ना का यौवन
गलीधारी भगते आए,
दहक उठी स्तन की बातें
स्तन वाली सब चिल्लाए।
टूटे कमल की पंखुड़ी वाले
नयनों में अश्रु भर बोले,
एक कोहरे की गहराई में
बैठ गई कोई स्तन खोले।
कोहरे में कोहराम मचा
भीड़ अति भी जम आई,
यौवन के इस विलख खेल में
दिखी मातृ सी परछाई।
स्तन के जादू के दर्शक
अब दूरी से दूर हुए,
उहा-उहा के रोदन से
सब कृतज्ञ मजबूर हुए।
थम से गए करुणा गीत
उहा-उहा बोले ना डोले,
एक कोहरे की गहराई में
बैठ गई कोई स्तन खोले।
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स्त्री विमर्श वर्तमान में काव्य का सबसे संवेदनशील मुद्दा है और अधिकांशतः इस मुद्दे को शक्तिशाली करने का कार्य भी महिलाओं द्वारा ही किया गया है। ये कविता नारी के चरित्र में बँधी जड़ों को उखाड़ फेकने का कार्य करती है, 'स्तन' शब्द ही नारी के सकारात्मक और नकारात्मक दोंनो पक्षों को सामने लाता है और यही स्तन शब्द इस कविता में जान डालता है।