रास्ते बदलते गए JASPAL SINGH
रास्ते बदलते गए
JASPAL SINGHखुद-ब-खुद रास्ते बदलते गए,
बेखबर हम उन्हीं पे चलते गए।
मोड़ आते गए हम मुड़ते गए,
आए पड़ाव तो ठहरते गए।
ता-उम्र खूं से पैर लाल रहे,
कांटे चुभते गए निकलते गए।
जो मुकद्दर थे हकीकत ना बने,
जो मुकद्दर ना थे वो मिलते गए।
दिए झोंके ने सब बुझा डाले,
दिल मगर रात भर जलते गए।
जैसे-जैसे कदम मंजिल को बढ़े,
फासले मंजिलों से बढ़ते गए।
हबीब-ए-जां मुसाफिरों से लगे,
रफीक-ए-राह हबीब बनते गए।
जिन्दगी जिन्दगी थी खेल ना था,
क्यों सभी खेल-खेल चलते गए।