रास्ते बदलते गए  JASPAL SINGH

रास्ते बदलते गए

JASPAL SINGH

खुद-ब-खुद रास्ते बदलते गए,
बेखबर हम उन्हीं पे चलते गए।
 

मोड़ आते गए हम मुड़ते गए,
आए पड़ाव तो ठहरते गए।
 

ता-उम्र खूं से पैर लाल रहे,
कांटे चुभते गए निकलते गए।
 

जो मुकद्दर थे हकीकत ना बने,
जो मुकद्दर ना थे वो मिलते गए।
 

दिए झोंके ने सब बुझा डाले,
दिल मगर रात भर जलते गए।
 

जैसे-जैसे कदम मंजिल को बढ़े,
फासले मंजिलों से बढ़ते गए।
 

हबीब-ए-जां मुसाफिरों से लगे,
रफीक-ए-राह हबीब बनते गए।
 

जिन्दगी जिन्दगी थी खेल ना था,
क्यों सभी खेल-खेल चलते गए।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1046
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com